संदीप कुमार
डोलवा (सोनभद्र)। महाप्रतापी योद्धा वीर बाबा चौहरमल की 712वीं जयंती शुक्रवार को डोलवा गांव में हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस अवसर पर उनके चित्र पर माल्यार्पण कर उपस्थितजनों ने उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में भारी संख्या में पासवान (दुसाध) समाज के लोगों की उपस्थिति रही।

समारोह में समाज के वक्ताओं ने कहा कि बाबा चौहरमल सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ बगावत और संघर्ष का प्रतीक रहे हैं। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों और समाज के लोगों को अपने महान पूर्वजों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दें। वक्ताओं ने कहा, “पासवान समाज प्रारंभ से ही बागी समाज रहा है, जिसने सदैव अन्याय के खिलाफ लाठी के बल पर संघर्ष किया है। हम सभी ऐसे पराक्रमी कुल के वंशज हैं, इसलिए हमें अपने अधिकारों के लिए जागरूक रहना होगा और हर प्रकार के अत्याचार के खिलाफ संवैधानिक लड़ाई लड़ने को तैयार रहना चाहिए।”
कार्यक्रम के दौरान समाज में एकता और जागरूकता फैलाने के लिए कई वक्ताओं ने विचार रखे और समाज को संगठित होकर आगे बढ़ने का संदेश दिया।

बाबा चौहरमल का संक्षिप्त परिचय:
वीर बाबा चौहरमल का जन्म 4 अप्रैल 1313 को बिहार के मोकामा अंचल के घोरौनी टोला शंकरबाड़ में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बन्दीमल और माता का नाम रघुमती था। उनका कर्मस्थल मोकामा ताल के चाराडीह में रहा, जबकि उनका ननिहाल तुरकैजनी गांव में था। समाज हित में कार्य करते हुए उन्हें चाराडीह और तुरकैजनी के बीच लगातार आना-जाना पड़ता था। उनका ससुराल बड़हिया के खुटहा गांव में था।
बाबा चौहरमल का जीवन संघर्ष, पराक्रम और समाजसेवा की मिसाल है, और उनकी जयंती समाज को जागरूकता और आत्मगौरव का संदेश देती है।